इश्क़ की राह में मर जाए ज़रूरी तो नहीं आदमी हद से गुज़र जाए ज़रूरी तो नहीं हैं दुआ गो जो अभी हाथ पसारे अपने उन की तक़दीर सँवर जाए ज़रूरी तो नहीं मैं ने माना कि कठिन राहगुज़र है लेकिन राएगाँ मेरा सफ़र जाए ज़रूरी तो नहीं नेक आ'माल की बतलाए फ़ज़ीलत जो सदा ख़ैर का कार वो कर जाए ज़रूरी तो नहीं चुप के बिस्तर पे जो लेटा है ख़मोशी ओढ़े एक आवाज़ से डर जाए ज़रूरी तो नहीं गुल की ख़ातिर नहीं फैला मिरा दामन लेकिन ये फ़क़त ख़ार से भर जाए ज़रूरी तो नहीं जुर्म का मुझ पे जो इल्ज़ाम लगा है 'अंजुम' वो किसी और के सर जाए ज़रूरी तो नहीं