इश्क़ आईना-ए-हैरत के सिवा कुछ भी नहीं मेरी सूरत तिरी सूरत के सिवा कुछ भी नहीं हुस्न कहते हैं जिसे इश्क़-ओ-मोहब्बत वाले जौहर-ए-चश्म-ए-बसीरत के सिवा कुछ भी नहीं दौलत-ए-क़ुर्ब हो या ने'मत-ए-इरफ़ान-ए-जमाल सिर्फ़ इक अश्क नदामत के सिवा कुछ भी नहीं हिज्र हो वस्ल हो ऐ दोस्त अदम हो कि वजूद इक तिरी चश्म-ए-इनायत के सिवा कुछ भी नहीं तेरी हस्ती कि नदामत के सिवा सब कुछ है मेरी फ़ितरत कि नदामत के सिवा कुछ भी नहीं हुस्न-ए-ज़ाहिर हो कि ऐ आरज़ू हुस्न-ए-बातिन ज़ुल्फ़-ए-इदराक की निकहत के सिवा कुछ भी नहीं