होश नहीं है दोश का जल्वा-गह-ए-नमाज़ में सर ही का कुछ पता नहीं सज्दा-ए-बे-नियाज़ में सुब्ह-ए-अज़ल भी बे-नक़ाब जिस की निगाह-ए-नाज़ में हाए वो सूरत-ए-जमील बुत-कदा-ए-मजाज़ में इश्क़ की ज़िंदगी का राज़ गुम है शिकस्त-ए-साज़ में इशरत-ए-रूह ढूँडिए शोरिश-ए-जाँ-गुदाज़ में जुज़ दिल-ए-इश्क़-ए-मो'तबर और को इस की क्या ख़बर आलम-ए-रंग रंग है पर्दा-ए-राज़ राज़ में मेरी निगाह-ए-शौक़ में वो भी मक़ाम है जहाँ हुस्न का भी पता नहीं अपनी हरीम-ए-नाज़ में कैसे रूकूअ' क्या सुजूद कैसे क़याम क्या क़ूऊद मेरी नमाज़ खो गई कैफ़ियत-ए-नमाज़ में ऐ दिल-ओ-जान-ए-आशिक़ाँ माना कि कुछ नहीं यहाँ तेरे सिवा मगर है क्या दीदा-ए-इम्तियाज़ में निस्बत-ए-हुस्न है मुझे इश्क़ से रब्त है मिरा शो'ला-ए-बर्क़-ए-नाज़ हूँ वादी-ए-सोज़-ओ-साज़ में 'आरज़ू' मेरी ज़ीस्त अब तिश्ना-ए-ईन-ओ-आँ नहीं मेरा गुज़र है आज-कल यार की बज़्म-ए-नाज़ में