इश्क़ आज़ार कर दिया जाए ग़म को बेदार कर दिया जाए कर लो आबाद हिज्र-ए-याराँ को घर का मुख़्तार कर दिया जाए ठोकरें कुछ भले उधर की लगें हम को उस पार कर दिया जाए कोई मिट्टी के दाम देने लगे साफ़ इंकार कर दिया जाए आओ निकलें जुनूँ के साए में घर को मिस्मार कर दिया जाए ऐसे कुछ रहनुमा मयस्सर हों नेक किरदार कर दिया जाए