इश्क़ जब मंज़िल-ए-आख़िर से गुज़रता होगा एक भी अश्क न आँखों से टपकता होगा हम तो जब जानें कि जब वक़्त हमारा बदले लोग कहते हैं बदलता है बदलता होगा होगा ऐ दोस्त यक़ीनन वो मिरे दिल की तरह जो दिया रुख़ पे हवाओं के भी जलता होगा आज ठहराया है ख़ुद जिस ने मुझे क़ाबिल-ए-दार कल वही मेरी वफ़ाओं को तरसता होगा साग़र-ए-चश्म में मय-कश उसे भरते होंगे रंग जब आप के चेहरे से छलकता होगा जो नज़र उठती है बन जाती है इक मौज-ए-ख़ुमार दस्त-ए-साक़ी में कोई जाम छलकता होगा हाल 'अख़्गर' के तड़पने का सुना जब तो कहा उस की फ़ितरत ही तड़पना है तड़पता होगा