इश्क़ में दिल का ये मंज़र देखा आग में जैसे समुंदर देखा खो गए हम तिरी आहट पा कर या'नी आवाज़ को सुन कर देखा जिस को सुन कर न यक़ीं आए कभी फ़ी-ज़माना वही अक्सर देखा ना-रसाई-ए-जुनूँ मोहकम है हम ने दीवार में दर कर देखा दिल पे इक नक़्श-ए-कफ़-ए-पा उभरा एक सहरा में गुल-ए-तर देखा मैं वो मोमिन हूँ कि जिस ने पत्थर कभी चूमा कभी छू कर देखा डूब जाने का ख़याल आया जहाँ वहीं पायाब समुंदर देखा बस-कि मंसूब था इक नाम के साथ मुतमइन ही दिल-ए-'अख़्गर' देखा