इश्क़ का दर्द-ए-बे-दवा है ये जाने तेरी बला कि क्या है ये मार डालेगी एक आलम को तेरी ऐ शोख़ गर अदा है ये हर दम आता है और ही सज से क्या ही अल्लाह मीरज़ा है ये चाहिए उस का शर्बत-ए-दीदार कि तप-ए-इश्क़ की दवा है ये उस सितम-पेशा मेहर दुश्मन की मेरे ऊपर अगर जफ़ा है ये इस में उस की तो कुछ नहीं तक़्सीर चाहने की मिरे सज़ा है ये दिल-ए-'बेदार' को तो लूट लिया ज़ुल्फ़ है या कोई बला है ये