इश्क़ की चिंगारियों को फिर हवा देने लगे मेरे पास आ कर वो दुश्मन को दुआ देने लगे मय-कदे का मय-कदा ख़ामोश था मेरे बग़ैर मैं हुआ वारिद तो पैमाने सदा देने लगे ख़त्म करना ही पड़ेंगी शाम-ए-ग़म की उलझनें अब वो अपने गेसुओं का वास्ता देने लगे ए'तिराफ़-ए-औज का जज़्बा नहीं अहबाब में हर तरक़्क़ी पर तरक़्क़ी की दुआ देने लगे दोस्तों की कज-अदाई मैं भी लज़्ज़त है 'शकील' दोस्त वो है दोस्त बन कर जो दग़ा देने लगे