शग़्ल भी अशक-ए-ख़ूँ-फ़िशानी का खेल है आग और पानी का जल गया तूर ग़श हुए मूसा खुल गया हाल लन-तरानी का जान दे कर रह-ए-मोहब्बत में मिल गया लुत्फ़-ए-ज़िंदगानी का आह-ए-दिल ने दिया सहारा कुछ जब बढ़ा ज़ोर ना-तवानी का जब से तस्वीर तेरी देखी है रंग-ए-रुख़ उड़ गया है मानी का कुछ समझ में न आज तक आया फ़ल्सफ़ा मौत-ओ-ज़िंदगानी का