इश्क़ की दीवानगी मिट जाएगी या किसी की ज़िंदगी मिट जाएगी ख़त्म हो जाएगा जब क़िस्सा हुज़ूर आप की हैरानगी मिट जाएगी आप भी रोएँगे शायद ज़ार-ज़ार फूल जैसी ये हँसी मिट जाएगी एक दिन बुझ जाएँगे ये महर ओ माह या नज़र की रौशनी मिट जाएगी या फ़ना हो जाएँगी गलियाँ तिरी या मिरी आवाज़ ही मिट जाएगी हुस्न भी बर्बाद हो जाएगा दोस्त और दिल की दिल-कशी मिट जाएगी इस क़दर आबाद हो जाएँगे लोग हसरत-ए-तामीर ही मिट जाएगी