जो मेरे बस में है उस से ज़ियादा क्या करना सफ़र तो करना है उस का इरादा क्या करना बस एक रंग है दिल में किसी के होने से अब अपने-आप को इस से भी सादा क्या करना जब अपनी आग ही काफ़ी है मेरे जीने को तो महर ओ माह से भी इस्तिफ़ादा क्या करना तिरे लबों के सिवा कुछ नहीं मयस्सर जब सो फ़िक्र-ए-साग़र-ओ-साक़ी-ओ-बादा क्या करना तमाम कश्तियाँ साहिल पे हैं अभी ठहरी अभी से इन को जलाने का वादा क्या करना