इश्क़ की दुनिया में क्या क्या हम को सौग़ातें मिलीं सूनी सुब्हें रोती शामें जागती रातें मिलीं या बरसती धूप में तपते सुलगते दिन मिले या रिदा-ए-दर्द में लिपटी हुई रातें मिलीं कुछ सबाहत कुछ मलाहत थी नसीब-ए-आशिक़ाँ आँसुओं के रंग में नमकीन बरसातें मिलीं गह उजड़ जाने का मातम गह बिछड़ जाने का शोर दिल के अंदर जब मिलीं नौहों की बारातें मिलीं खोखले चेहरों पे सीम-ओ-ज़र की थीं आराइशें अहल-ए-मअ'नी को मगर लफ़्ज़ों की ख़ैरातें मिलीं खेलने वाले तो बस दस बीस शतरंजी रहे देखने वालों को शह-मातों पे शह-मातें मिलीं ज़लज़ले आए तो जो पैकर थे संग-ओ-ख़िश्त के उन के होंटों पर दुआएँ और मुनाजातें मिलीं इश्क़ को फ़िक्र-ओ-शुऊर-ए-ज़िंदगी दरकार था और उसे ना-पुख़्ता ज़ेहनों की करामातें मिलीं हम उन्ही को शेर का क़ालिब अता करते रहे बे-सदा होंटों पे जो बिखरी हुई बातें मिलीं किस तरह कहते 'करम' दुनिया से अपने दिल का हाल दोस्तों से भी अधूरी सी मुलाक़ातें मिलीं