दिल का हर एक ज़ख़्म गहरा है इस से हर वक़्त ख़ून रिसता है दम लिया हम ने ग़म के साए में वर्ना हर सम्त ख़ुश्क सहरा है उस को किस तरह मैं भुला देता जिस का हर दम ख़याल आता है बुझ गया जब से अपने दिल का चराग़ चाँदनी का भी रंग फीका है इक सहारा मिला है ग़म का हमें वर्ना दुनिया में कौन किस का है यूँ तो कौनैन मेरे सामने हैं कौन मेरी नज़र में तुझ सा है ये बताए कोई 'करामत' से मुख़्तलिफ़ सब से उस का लहजा है