इश्क़ की ख़ूबी कहूँ क्या आश्ना जान का दुश्मन है दिल का आश्ना बहर-ए-उल्फ़त से किनारा ख़ूब है खा गया ग़ोता तो डूबा आश्ना रोज़-ए-बद से डर कि हो जाते हैं फिर दोस्त दुश्मन आश्ना ना-आश्ना दहर में कमयाब क्या नायाब हैं कीमिया दरवेश सच्चा आश्ना शाग़लान-ए-इश्क़ का ये दर्द है या मुहिब या मेहरबान या आश्ना पाक उल्फ़त हो तो फिर क्या ऐ रक़ीब आश्ना है आश्ना का आश्ना दो समझना साफ़ है बे-वहदती एक ही बेगाना हो या आश्ना हम तो दिल से नेक समझे हैं तुम्हें तुम बुरा कहते हो अच्छा आश्ना दिल जले क्या क्या नहीं कहते तुम्हें बे-मुरव्वत बेवफ़ा ना-आश्ना आओ जी दिल खोल कर मिल लीजिए ज़िंदगी का क्या भरोसा आश्ना क़ुल्ज़ुम-ए-इश्क़ एक तूफ़ाँ-ख़ेज़ है डूबे इस दरिया में सदहा-आश्ना कहिए तो कह दूँ हज़ारों में ये बात है 'नसीम' इक गुल-बदन का आश्ना