इश्क़ की सई-ए-बद-अंजाम से डर भी न सके हम तिरी चश्म-ए-इनायत से उतर भी न सके तू न मिलता मगर अल्लाह रे महरूमी-ए-शौक़ जीने वाले तिरी उम्मीद में मर भी न सके बर्क़ से खेलने तूफ़ान पे हँसने वाले ऐसे डूबे तिरे ग़म में कि उभर भी न सके हुस्न ख़ुद हुस्न-ए-मुजस्सम से पशीमाँ उट्ठा आईना ले के वो बैठे तो सँवर भी न सके तिश्ना-लब बैठे हैं मय-ख़ाना-ए-हस्ती में 'सहर' दिल वो टूटा हुआ पैमाना कि भर भी न सके