इश्क़ क्यूँ रुस्वा हुआ अपना सर-ए-राहे गाहे आ इसी तरह जो मिल जाइए गाहे गाहे बे-रुख़ी अहल-ए-मोहब्बत से रवा तुम को नहीं सदक़ा-ए-हुस्न सही मुझ पे निगाहे गाहे दिल को मिज़्गाँ का तसव्वुर ही बहुत काम आया डूबते को है सहारा पर-ए-काहे गाहे आरज़ू है कि तिरे कूचे से हम भी गुज़रें पैरहन चाक-ब-ईं हाल-ए-तबाहे गाहे ज़िंदगी ख़त्म हुई बस इसी हसरत में कि वो मुझ को पास अपने बुलाए मुझे चाहे गाहे दिल में तस्वीर तुम्हारी न उतारूँ तो कहो पर्दा-ए-रुख़ भी उठे जल्वा-पनाहे गाहे 'बर्क़'-ए-ग़म-दीदा तिरा मुस्तहिक़-ए-लुत्फ़ हुआ सुनते हैं अर्श को जा लेती है आहे गाहे