इश्क़ क्या है ग़म-ए-हस्ती का फ़ना हो जाना पैकर-ए-ख़ाक का मिट मिट के ख़ुदा हो जाना ये दू दो-जहाँ है तिरी ज़ुल्फ़ों का असीर रास आया है उसे सैद-ए-बला हो जाना ना-ख़ुदाई पे है नाज़ अहल-ए-सफ़ीना हुशियार ना-ख़ुदा चाहता है आप ख़ुदा हो जाना सैंकड़ों सज्दों में वाइ'ज़ को हुआ है हासिल ज़ीनत-ए-महफ़िल-ए-अर्बाब-ए-रिया हो जाना फ़ैज़-ए-आसी है कि इस बज़्म-ए-सुख़न में 'क़ैसर' है मयस्सर मुझे यूँ गर्म-नवा हो जाना