रास्ते जिस तरफ़ बुलाते हैं हम उसी सम्त चलते जाते हैं रोज़ जाते हैं अपने ख़्वाबों तक रोज़ चुप-चाप लौट आते हैं उड़ते फिरते हैं जो ख़स ओ ख़ाशाक ये कोई दास्ताँ सुनाते हैं ये मोहब्बत भी एक नेकी है इस को दरिया में डाल आते हैं याद के इस खंडर में अक्सर हम अपने दिल का सुराग़ पाते हैं शाम से जल रहे हैं बे-मसरफ़ इन चराग़ों को अब बुझाते हैं