इश्क़ मानूस-ए-इल्तिजा न हुआ हुस्न आज़ुर्दा-ए-जफ़ा न हुआ जैसा चाहा बना लिया तुम ने इक खिलौना हुआ ख़ुदा न हुआ बुत ख़ुदा बन के बार बार आए मैं ही शर्मिंदा-ए-दुआ न हुआ सब ग़लत-फ़हमियाँ ही मिट जातीं दिल सज़ा-वार-ए-इल्तिजा न हुआ हाए मजबूरियाँ मोहब्बत की मैं ख़फ़ा हो के भी ख़फ़ा न हुआ जाने ला कर कहाँ डुबो देता ख़ैर गुज़री वो नाख़ुदा न हुआ आबरू का तिरी ख़याल आया मुझ को मरने का हौसला न हुआ