इश्क़ में ज़ोर उम्र-भर मारा आक़िबत कोहकन ने सर मारा नाला-ए-दिल ने ख़ुश-नवाई में ता'ना-ए-सौत हज़ार पर मारा ज़ख़्म पिन्हाँ दिल-ओ-जिगर में नहीं न खुला क्या इधर-उधर मारा मुझ को घड़ियालियों ने हिज्र की रात बे-बजाए हुए गजर मारा दहने बाएँ मलक हैं देख न लें इस लिए देख-भाल कर मारा सादगी पर मिटे हुए थे यूँही और भी उस ने बन-सँवर मारा मर-मिटों का पता कहीं न लगा बे-निशानों का ढूँढ घर मारा चश्म-ए-तर ने बहा के जू-ए-सरिश्क मौज-ए-दरिया को धार पर मारा हम वो हैं कुश्ता-ए-तमन्ना 'शाद' ख़्वाहिश-ए-दिल को उम्र-भर मारा