इश्क़-ए-रुख़-ओ-ज़ुल्फ़ में किया कूच शब आ के रहा सहर किया कूच ख़य्यात-ए-नफ़स का है बजा कूच दर्ज़ी का है क्या मक़ाम क्या कूच जब मौज-ए-रवाँ कहीं न ठहरी दम ले के हबाब कर गया कूच हर-दम है रवा न उम्र-ए-इंसाँ हर एक नफ़स है कर रहा कूच परवाना जला तो शम्अ' बोली तेरा है उधर इधर मिरा कूच वो सोज़न-ए-साअत-ए-रवाँ हूँ करती है जो हर मिनट सदा कूच घुंघरू दम-ए-नज़अ बोलता है आवाज़ जरस ने दी हुआ कूच हम साथ थे पा-शिकस्ता जिस के लश्कर वो जहाँ से कर गया कूच शब-भर है फ़रोग़-ए-शो'ला ऐ 'शाद' हंगाम-ए-सहर है शम्अ' का कूच