इश्क़ में कौन कामयाब हुआ इश्क़ जिस ने किया ख़राब हुआ देखना होंगी रख़्ना-गर नज़रें माने-ए-दीद अगर नक़ाब हुआ रब्त-ए-बाहम ने कर दिया मुश्किल उस का मैं वो मिरा जवाब हुआ जल गया तूर ग़श हुए मूसा जब तिरा हुस्न बे-नक़ाब हुआ देख कर आप मेरे अश्कों की पानी पानी दुर-ए-ख़ुश-आब हुआ आई पीरी गईं उमंगें सब ख़त्म अफ़्साना-ए-शबाब हुआ जब चले चाल वो क़यामत की उठ के फ़ित्ना भी हम-रिकाब हुआ इस क़दर ख़ूगर-ए-करम हूँ मैं मेहर समझा अगर इ'ताब हुआ लफ़्ज़ कुन का था मुख़्तसर सा लफ़्ज़ दर-हक़ीक़त ये इक किताब हुआ बहर-ए-आलम में सब हैं दम-भर के ग़म हुए मैं हुआ हबाब हुआ अब कहाँ रातें ऐश की 'साबिर' वो ज़माना ख़याल-ओ-ख़्वाब हुआ