पैमाना तिरे लब हैं आँखें तिरी मय-ख़ाना जिस ने भी तुझे देखा तेरा हुआ दीवाना इस तरह बदल जाना इक पल में तिरा साक़ी हर शख़्स बुलाता है कह कर तुझे बेगाना मशहूर ज़माने में है दरिया-दिली तेरी इक जाम दे मुझ को भी ऐ साक़ी-ए-मस्ताना ऐ शम्अ' तेरी लौ में वो कौन सी ख़ूबी है जो तुझ से गले मिल कर जल जाता है परवाना जो पास है 'सागर' के सब कुछ है तिरा साक़ी जाँ भी तिरा तोहफ़ा है दिल भी तिरा नज़राना