इश्क़ में कोई हमसरी करता हम को इल्ज़ाम से बरी करता एक बोतल में वो समा जाती उस को जादू से मैं परी करता छेड़ मा'सूम सी चला करती वो भी हँस हँस के दिलबरी करता उस ने जंगल जला दिए लेकिन शाख़ इक पेड़ की हरी करता चाँद आता जो रोज़ आँगन में साथ मेरे सुख़न वरी करता शाइ'री हम पे छोड़ देनी थी मिर्ज़ा 'ग़ालिब' सिपह-गरी करता एक दिन तुझ को डूब जाना था जो भी करता तू सरसरी करता ख़ाक होता वो सर-बुलंदी में पाएमाली में सरवरी करता शे'र कहता नहीं अगर मैं भी ख़िर्क़ा पहने क़लंदरी करता वो जवानी 'अयाज़' ऐसी थी बात मैं भी खरी खरी करता