इश्क़ में ला-जवाब हैं हम लोग माहताब आफ़्ताब हैं हम लोग गरचे अहल-ए-शराब हैं हम लोग ये न समझो ख़राब हैं हम लोग शाम से आ गए जो पीने पर सुब्ह तक आफ़्ताब हैं हम लोग हम को दावा-ए-इश्क़-बाज़ी है मुस्तहिक़्क़-ए-अज़ाब हैं हम लोग नाज़ करती है ख़ाना-वीरानी ऐसे ख़ाना-ख़राब हैं हम लोग हम नहीं जानते ख़िज़ाँ क्या है कुश्तगान-ए-शबाब हैं हम लोग तू हमारा जवाब है तन्हा और तेरा जवाब हैं हम लोग तू है दरिया-ए-हुस्न-ओ-महबूबी शक्ल-ए-मौज-ओ-हबाब हैं हम लोग गो सरापा हिजाब हैं फिर भी तेरे रुख़ की नक़ाब हैं हम लोग ख़ूब हम जानते हैं अपनी क़द्र तेरे ना-कामयाब हैं हम लोग हम से ग़फ़लत न हो तो फिर क्या हो रह-रव-ए-मुल्क-ए-ख़्वाब हैं हम लोग जानता भी है उस को तू वाइ'ज़ जिस के मस्त-ओ-ख़राब हैं हम लोग हम पे नाज़िल हुआ सहीफ़ा-ए-इश्क़ साहिबान-ए-किताब हैं हम लोग हर हक़ीक़त से जो गुज़र जाएँ वो सदाक़त-मआब हैं हम लोग जब मिली आँख होश खो बैठे कितने हाज़िर-जवाब हैं हम लोग हम से पूछो 'जिगर' की सर-मस्ती महरम-ए-आँ-जनाब हैं हम लोग