ख़राबा एक दिन बन जाए घर ऐसा नहीं होगा अचानक जी उठें वो बाम-ओ-दर ऐसा नहीं होगा वो सब इक बुझने वाले शोला-ए-जाँ का तमाशा था दोबारा हो वही रक़्स-ए-शरर ऐसा नहीं होगा वो सारी बस्तियाँ वो सारे चेहरे ख़ाक से निकलें ये दुनिया फिर से हो ज़ेर-ओ-ज़बर ऐसा नहीं होगा मिरे गुम-गशतगाँ को ले गई मौज-ए-रवाँ कोई मुझे मिल जाए फिर गंज-ए-गुहर ऐसा नहीं होगा ख़राबों में अब उन की जुस्तुजू का सिलसिला क्या है मिरे गर्दूं-शिकार आएँ इधर ऐसा नहीं होगा हयूले रात भर मेहराब-ओ-दर में फिरते रहते हैं में समझा था कि अपने घर में डर ऐसा नहीं होगा मैं थक जाऊँ तो बाज़ू-ए-हवा मुझ को सहारा दे गिरूँ तो थाम ले शाख़-ए-शजर ऐसा नहीं होगा कोई हर्फ़-ए-दुआ मेरे लिए पतवार बन जाए बचा ले डूबने से चश्म-ए-तर ऐसा नहीं होगा कोई आज़ार पहले भी रहा होगा मिरे दिल को रहा होगा मगर ऐ चारा-गर ऐसा नहीं होगा ब-हद्द-ए-वुसअत-ए-ज़ंजीर गर्दिश करता रहता हूँ कोई वहशी गिरफ़्तार-ए-सफ़र ऐसा नहीं होगा बदायूँ तेरी मिट्टी से बिछड़ कर जी रहा हूँ मैं नहीं ऐ जान-ए-मन, बार-ए-दिगर ऐसा नहीं होगा