इश्क़ में मुझ को बिगड़ कर अब सँवरना आ गया हो गया नाकाम लेकिन काम करना आ गया ये अगर सच है कि मुझ को इश्क़ करना आ गया तो समझ लो रोज़ जीना रोज़ मरना आ गया दावा-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा पर मुझ को मरना आ गया कह गुज़रने की जगह अब कर गुज़रना आ गया वर्ता-ए-दरिया-ए-ग़म ने ऐसे ग़ोते दे दिए डूबना फिर डूब कर मुझ को उभरना आ गया चंद ख़ूँ-आलूदा आँसू जज़्ब-ए-दामन हो गए पैकर-ए-सादा में ग़म को रंग भरना आ गया शेवा-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा में हम को नाकामी सही कम से कम ये तो हुआ बे-मौत मरना आ गया शौक़ से ज़ुल्म-ओ-सितम अब रोज़ ढाते जाइए अहल-ए-ग़म को ग़म उठा कर ग़म न करना आ गया कुछ तवहहुम कुछ तवक़्क़ो कुछ अलम कुछ इम्बिसात इश्क़ कर के मुझ को जीना और मरना आ गया कसरत-ए-आज़ार ने तालीम दे दी ज़ब्त की जब्र के बाइस से दिल को सब्र करना आ गया अश्क आँखों में पहुँच कर दिल में फिर वापस गए यूँ समझ ले चढ़ते दरिया का उतरना आ गया कम से कम था इक तरह का आसरा इक़रार तक लेकिन उन को साफ़ अब इंकार करना आ गया रहगुज़र से इश्क़ की मैं आज तक गुज़रा नहीं किस तरह कह दूँ मुझे जी से गुज़रना आ गया हुस्न की नख़वत ने पहुँचाया उड़ा कर अर्श तक अब तो परियों का भी तुम को पर कतरना आ गया बहर-ए-ज़ौक़-ओ-शौक़ में ये भी ग़नीमत जानिए 'नूह' को तूफ़ान उठा कर ग़र्क़ करना आ गया