इश्क़ मियाँ इस आग में मेरा ज़ाहिर ही चमका देना मेरे बदन की मिट्टी को ज़रा कुंदन-रंग बना देना आओ तुम्हारी नज़्र करें हम एक चराग़ हिकायत का जब तक जागो रौशन रखना नींद आए तो बुझा देना बीस इक्कीस बरस पीछे हमें कब तक मिलते रहना है देखो, अब की बार मिलो तो दिल की बात बता देना सीने के वीराने में ये ख़ुशबू एक करामत है वर्ना इतना सहल नहीं था राख में फूल खिला देना दिल की ज़मीं तक रौशनियाँ थीं, चेहरे थे, हरियाली थी अब तो जहाँ भी साहिल पाना कश्ती को ठहरा देना मौला, फिर मिरे सहरा से बिन बरसे बादल लौट गए ख़ैर, शिकायत कोई नहीं है अगले बरस बरसा देना ख़्वाजा ख़िज़्र सुनो हम कब से इस बस्ती में भटकते हैं तुम को अगर तकलीफ़ न हो तो जंगल तक पहुँचा देना