तबाह कर के हर इक नक़्श-ए-जिस्म-ओ-जाँ हम ने बना दिया है मोहब्बत को जावेदाँ हम ने ग़लत-रवी पे तिरी तब्सिरा मुहाल न था तिरा लिहाज़ किया मीर-ए-कारवाँ हम ने हमारे दीदा-ए-बे-आब को न ता'ने दो लुटा दिया है सितारों का इक जहाँ हम ने हटी हटी से तवज्जोह ये अहल-ए-महफ़िल की बदल दिया है कहीं रंग-ए-दास्ताँ हम ने सितम किए हैं बहुत दिल पे ये हक़ीक़त है अयाँ न कर के वफ़ूर-ए-ग़म-ए-निहाँ हम ने न-जाने राज़-ए-मोहब्बत का हश्र क्या होगा बना लिए हैं कई अपने राज़-दाँ हम ने निगाह सिर्फ़ तहय्युर हवास वारफ़्ता लिया था जज़्ब-ए-मोहब्बत का इम्तिहाँ हम ने न जाने कौन सी आफ़त 'नसीर' हो नाज़िल अगर चमन में किया ज़िक्र-ए-आशियाँ हम ने