इश्क़ ने मेरे जिसे अलक़ाब का दफ़्तर दिया उस ने सोने को मुझे काँटों भरा बिस्तर दिया मेरी तहरीरों से ख़ाइफ़ हो के फिर अग़्यार ने रंग कोई और अफ़्सानों में मेरे भर दिया तेरे आँगन से उतरती चाँदनी ने अब तलक ख़ौफ़ बख़्शा सिसकियाँ दीं और मुझ को डर दिया जा तिरी झोली में मैं ने अपनी ख़ुशियाँ डाल दीं जा तिरे दामन को उम्मीदों से मैं ने भर दिया तेरी चाहत का भरम रखने का सौदा सर में था हम ने अपना घर दिया फिर ज़र दिया फिर सर दिया जब हुनर उस की मोहब्बत का खुला मुझ पर 'सबीन' क़ैद उस ने घर की दीवारों में मुझ को कर दिया