इश्क़ उन सब से अलग सब से जुदा होता है चीख़ने रोने तड़प लेने से क्या होता है याद आता है गले मिल के तिरा पछताना हर नई ईद में ये रंज नया होता है जो भला करता है अल्लाह के बंदों के लिए ग़ैब से उस का भी हर काम भला होता है गुफ़्त-ओ-गू में ये नज़ाकत है कि अल्लाह अल्लाह एक इक हर्फ़ भी मुश्किल से अदा होता है क़हर होता है हसीनों में जो होता है मतीं शोख़ होता है जो उन में वो बला होता है जीने देती है किसे प्यार की सूरत काफ़िर दोस्त तो दोस्त है दुश्मन भी फ़िदा होता है तज़्किरे हुस्न के सुन हुस्न का दिल-दादा न बन बाज़ बातों के तो सुनने में मज़ा होता है मह-जबीं ईद में अंगुश्त-नुमा क्यूँ न रहें ईद का चाँद ही अंगुश्त-नुमा होता है फब्तियाँ ग़ैर पे कसने को है मौजूद 'सफ़ी' और उस पे कभी हँसिए तो ख़फ़ा होता है