इश्क़-ए-बुताँ का ले के सहारा कभी कभी अपने ख़ुदा को हम ने पुकारा कभी कभी आसूदा-ए-ख़ातिर ही नहीं मत्मह-ए-वफ़ा ग़म भी किया है हम ने गवारा कभी कभी इस इंतिहा-ए-तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद हम ने लिया है नाम तुम्हारा कभी कभी तूफ़ाँ का ख़ौफ़ है अभी शायद करिश्मा-कार आता है सामने जो किनारा कभी कभी तन्हा-रवी ने रक्खी हमारे जुनूँ की लाज गो अहल-ए-कारवाँ ने पुकारा कभी कभी अब क्या कहें दिल-ए-मुतलव्विन-मिज़ाज को अक्सर ये आप का है हमारा कभी कभी पैहम सितम से इश्क़ की तस्कीन हो न जाए ऐ दोस्त इल्तिफ़ात ख़ुदा-रा कभी कभी फ़रियाद-ए-ग़म से 'अर्श' सँभलता है दिल मगर लेते हैं अहल-ए-दिल ये सहारा कभी कभी