इश्क़-ए-जुनूँ-नवाज़ को सरशार देखना हर दर्द को है लज़्ज़त-ए-आज़ार देखना अपनी नज़र है औज-ए-सुरय्या से भी बुलंद हर कम-नज़र को ज़ीनत-ए-दीवार देखना किस किस के नाम आएगा परवाना-ए-अजल मक़्तल बना है कूचा-ए-दिलदार देखना रंगीं-क़बा ये फूल तो क्या इस से फ़ाएदा उर्यां है ज़ेर-ए-शाख़ हर इक ख़ार देखना थे जितने हक़-परस्त वही हो गए शहीद इक हम ही रह गए हैं सर-ए-दार देखना आशिक़ है अपने आप पे वो नाज़नीं 'निशात' सहबा-ए-अहमरीं को क़दह-ख़्वार देखना