इश्क़-ए-सादिक़ ने दिखाया ये असर आप से आप हो गई उन को मिरे दिल की ख़बर आप से आप चश्म-ए-जानाँ की अगर याद नहीं आई है आ गए जोश पे क्यों दीदा-ए-तर आप से आप कुछ मज़ा पड़ गया है उन को कि बे-वजह-ओ-सबब वस्ल की शब वो किया करते हैं शर आप से आप ख़ुफ़्ता-बख़्ती मिरी दिखलाती है तासीर अपनी बजने लगता है शब-ए-वस्ल गजर आप से आप न मोअज़्ज़िन ने अज़ाँ दी न अभी तोप चली दफ़अ'तन बोल उठा मुर्ग़-ए-सहर आप से आप ब-ख़ुदा उन की तरफ़ से नहीं कुछ ख़्वाहिश थी जान का अपनी किया हम ने ज़रर आप से आप ग़ैर को तुम ने बिठाया तो नहीं पहलू में आज उठता है ये क्यों दर्द-ए-जिगर आप से आप जज़्ब-ए-उल्फ़त तिरी तासीर का तब क़ाइल हूँ दें तो वो बोसा-ए-लब मुझ को मगर आप से आप लिल्लाह अल-हम्द किया आह ने इतना तो असर बे-तलब वो चले आए मिरे घर आप से आप होगी तासीर जो नालों में तुम्हारे 'वहबी' तो चला आएगा वो रश्क-ए-क़मर आप से आप