इश्क़ का दरिया हुआ सैराब क्या आग की ज़द में है अब के आब क्या उस की ख़ुशबू से बदन जलने लगा पी लिया है फूल ने तेज़ाब क्या आँख से किरनें लगीं हैं फूटने दिल में उतरा है कोई महताब क्या चुन रही हैं आँखें दोनों हाथ से रेत पर बिखरे हुए हैं ख़्वाब क्या आ रहे हैं झोंके उस के अक्स के दीद का खोला है उस ने बाब क्या कुछ अलग ही रक़्स है गिर्दाब में हो गया अरमाँ कोई ग़र्क़ाब क्या वज्द तारी कर रही है गुफ़्तुगू हर्फ़ तेरे हो गए मिज़राब क्या यूँ धड़क उट्ठी ज़मीं 'शहबाज़' क्यों रख दिया तू ने दिल-ए-बेताब क्या