इश्क़ का काम बख़्त-साज़ी है इस की हर बात इम्तियाज़ी है दिल-गुदाज़ी-ए-ग़म का ग़म क्या हो ग़म की फ़ितरत ही दिल-गुदाज़ी है हर क़दम पर ये कसरत-ए-जल्वा एहतिमाम-ए-नज़र-नवाज़ी है जिस को कहते हैं इंक़लाब-ए-हयात इक जुनूँ की करिश्मा-साज़ी है उस में क्या आए बू हक़ीक़त की जो मजाज़ी है वो मजाज़ी है लाख अरमाँ सही मगर ऐ दिल इश्क़-बाज़ी फिर इश्क़-बाज़ी है सच तो ये है कि इक बड़ी ने'मत निगह-ओ-दिल की पाक-बाज़ी है रंग या हुस्न की हक़ीक़त क्या सब नज़र की फ़ुसूँ-तराज़ी है फ़ैज़-ए-'इक़बाल' है जो 'मंशा' का नग़्मा हिन्दी है लय हिजाज़ी है