इश्क़ की गर्मी-ए-जज़्बात किसे पेश करूँ ये सुलगते हुए दिन-रात किसे पेश करूँ हुस्न और हुस्न का हर नाज़ है पर्दे में अभी अपनी नज़रों की शिकायात किसे पेश करूँ तेरी आवाज़ के जादू ने जगाया है जिन्हें वो तसव्वुर वो ख़यालात किसे पेश करूँ ऐ मिरी जान-ए-ग़ज़ल ऐ मिरी ईमान-ए-ग़ज़ल अब सिवा तेरे ये नग़्मात किसे पेश करूँ कोई हमराज़ तो पाऊँ कोई हमदम तो मिले दिल की धड़कन के इशारात किसे पेश करूँ