इश्क़ को रुस्वा किया ऐ हुस्न ये क्या कर दिया दार पर मंसूर को वक़्फ़-ए-तमाशा कर दिया कर रहा है नाख़ुदा बाद-ए-मुख़ालिफ़ का गिला मेरी क़िस्मत ने सफ़ीना ग़र्क़-ए-दरिया कर दिया तेरी बदनामी का बाइ'स हैं ये तेरी शोख़ियाँ और मिरी बेताबियों ने मुझ को रुस्वा कर दिया वाह क्या कहना है तेरा ऐ ख़याल-ए-हुस्न-ए-यार कुलबा-ए-तारीक में तू ने उजाला कर दिया ख़ून-ए-बुलबुल को बना कर ग़ाज़ा-ए-रू-ए-बहार पत्ती पत्ती में चमन की हुस्न पैदा कर दिया क्या सरापा हुस्न ही था इश्क़ का हुस्न-ए-कमाल मुझ को मेरी मा'रिफ़त ने तेरा शैदा कर दिया 'फ़ाज़िल'-ए-नाचीज़ क्या था एक क़तरा था मगर तेरे फ़ैज़-ए-आम ने क़तरे को दरिया कर दिया