इश्क़ क्या क्या न रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला टाई कॉलर की जगह चाक-गरेबाँ निकला ज़िक्र पतलून का क्या एक लंगोटी भी नहीं क़ैस तस्वीर के पर्दे में भी उर्यां निकला उस ने चप्पल से सर-ए-राह तवाज़ो कर दी अब तो अरमान तिरा ऐ दिल-ए-नादाँ निकला किस क़दर जल्द हुआ मरहला-ए-अक़्द भी तय सख़्त मुश्किल है कि ये काम भी आसाँ निकला मेरी आहें हों कि अग़्यार के सिगरेट का धुआँ जो तिरी बज़्म से निकला सो परेशाँ निकला बारकल्लाह ये एहसान कफ़न-चोरों का सूर फुँकना था कि मैं क़ब्र से उर्यां निकला इक फटा बोरिया इक जाम-ए-शिकस्ता 'हाशिम' बाद मरने के मिरे घर से ये सामाँ निकला