इश्क़ में बे-आबरू होना पड़ा दो ही दिन में तुम से तू होना पड़ा थी ये किस की आरज़ू जिस के लिए तारिक-ए-सद-आरज़ू होना पड़ा लाला-ज़ार-ए-सीना हाँ तेरे लिए आँख ही को आब-जू होना पड़ा किन बला-नोशों का बज़्म-ए-दहर में शीशा-ओ-जाम-ओ-सुबू होना पड़ा ता-ब-कै लूँ काम सब्र-ओ-ज़ब्त से आसमाँ से दू-बदू होना पड़ा इश्क़ का अंजाम रंगीं देखिए अश्क-ए-सादा को लहू होना पड़ा अंदलीब-ए-बाग़-ए-हस्ती को 'अमीं' मुब्तला-ए-रंग-ओ-बू होना पड़ा