इश्क़ में बे-नक़ाब हैं हम लोग आप अपना जवाब हैं हम लोग हम को सब्र-ओ-सुकूँ से क्या निस्बत ख़ूगर-ए-इज़्तिराब हैं हम लोग जिन से क़ाएम है ज़िंदगी का जमाल वो सरापा शबाब हैं हम लोग नज़्म-ए-दुनिया बदल दिया हम ने किस क़दर कामयाब हैं हम लोग हम पे तारीख़-ए-अस्र नाज़ाँ है बानी-ए-इंक़लाब हैं हम लोग हुस्न और इश्क़ की हिकायत का एक रंगीन बाब हैं हम लोग हम पे ईमान लाएँ अहल-ए-जहाँ आसमानी किताब हैं हम लोग सुब्ह-ए-महशर है आँख का खुलना रहने दो महव-ए-ख़्वाब हैं हम लोग राज़-ए-फ़ितरत जो खोलते हैं 'बहार' हाँ वो हिकमत-मआब हैं हम लोग