इश्क़ को रंग-ए-मुस्तक़िल ऐ मिरे चारा-साज़ दे साज़ न दे तो सोज़ दे सोज़ न दे तो साज़ दे अपनी हक़ीक़तों से तू हस्ब-ए-तलब नवाज़ दे ला मिरे दस्त-ए-शौक़ में आइना-ए-मजाज़ दे मेरा शुऊ'र-ए-ज़ब्त क्यों चारागरों को राज़ दे जिस ने दिया था ज़ख़्म-ए-दिल काश वही नवाज़ दे आ मिरे जज़्ब-ए-शौक़ को मर्तबा-ए-अयाज़ दे नज़्र करूँ मैं दिल तुझे तू मुझे अपना राज़ दे बादा-ओ-जाम की तरफ़ उस की नज़र उठेगी क्या जिस को सुरूर मुस्तक़िल तेरी निगाह-ए-नाज़ दे मैं ने 'बहार' इक वो गुल चुन लिया काएनात में जिस की हर इक अदा मुझे फ़िक्र-ए-ग़ज़ल नवाज़ दे