इश्क़ मेरा है अगर रात की रानी की तरह हुस्न उस का भी है फूलों की जवानी की तरह ऐ मिरी जान-ए-वफ़ा तेरी वफ़ाओं की क़सम तू मुझे याद है नानी की कहानी की तरह क्या कोई समझे तिरे हुस्न की तहदारी को मुझ पे खुलती है फ़क़त मिस्रा-ए-सानी की तरह कूचा-ए-दिल से गुज़रती हैं जो तेरी यादें अश्क बहते हैं मिरी आँखों से पानी की तरह चाहता जब हूँ कोई नज़्म कहूँ तेरे लिए मैं उलझ जाता हूँ अल्फ़ाज़-ओ-मआ'नी की तरह है सिवा कौन तिरे मुझ को जो तस्लीम करे मेरे महबूब मिरी तल्ख़-बयानी की तरह न कोई शोर शराबा न कोई हलचल है ज़िंदगी लगती है ठहरे हुए पानी की तरह मैं ने इस दिल की तिजोरी में रखा है 'आलम' उस की हर चीज़ को अनमोल निशानी की तरह