इश्क़ नहीं जो ज़ीस्त को दौलत-ए-आगही न दे महर नहीं जो ख़ाक को ख़िलअत-ए-रौशनी न दे बादा नहीं वो साक़िया जो नई सरख़ुशी न दे इशरत-ए-ज़िंदगी न दे नश्शा-ए-आगही न दे जाम-ए-ख़ुदी दे साक़िया साग़र-ए-बे-ख़ुदी न दे बादा-ए-होश दे मुझे दारू-ए-बे-हुशी न दे आमद-ए-नौ-बहार की दावत-ए-सर-ख़ुशी न दे बाद-ए-नसीम ही वो क्या जो नई ताज़गी न दे दोनों जहाँ का बार-ए-ग़म किस से उठेगा ऐ ख़ुदा या ग़म-ए-ज़िंदगी न दे या ग़म-ए-आशिक़ी न दे मैं ने ख़ुदा से पहले दिन रक्खी थी शर्त-ए-ज़िंदगी या मुझे ज़िंदगी ही दे या मुझे ज़िंदगी न दे रह-रव-ए-राह-ए-ज़िंदगी वक़्त से तेज़ चाल चल राहबरों को राह में फ़ुर्सत-ए-रहज़नी न दे हर्फ़ है लग़्ज़िश-ए-क़लम हर्फ़ है ख़त्त-ए-ना-रसा हर्फ़ जो रौशनी न दे लफ़्ज़ जो आगही न दे