उन को फिर बे-नक़ाब कौन करे दिल की दुनिया ख़राब कौन करे शौक़-ए-इज़हार-ए-आरज़ू ही नहीं दाग़-ए-ग़म का हिसाब कौन करे निगह-ए-इंतिख़ाब शाहिद है हिम्मत-ए-इंतिख़ाब कौन करे बज़्म में वो तो मुंतज़िर हैं मिरे बज़्म में बारयाब कौन करे देखते हैं वो मस्त नज़रों से याद जाम-ए-शराब कौन करे ताब-ए-गुफ़्तार ही नहीं बाक़ी शिकवा-ए-इज़्तिराब कौन करे दिल है नाकाम-ए-आरज़ू 'नय्यर' अब इसे कामयाब कौन करे