इसी ख़याल से तर्क उन की चाह कर न सके कहेंगे लोग कि दो दिन निबाह कर न सके हमें जो देख लिया झुक गई हया से आँख इधर-उधर सर-ए-महफ़िल निगाह कर न सके ख़ुदा के सामने आया कुछ इस अदा से वो शोख़ कि मुँह से उफ़ भी ज़रा दाद-ख़्वाह कर न सके तिरे करम का भरोसा ही ज़ाहिदों को नहीं इसी लिए तो ये खुल कर निगाह कर न सके रहा ये पास हमें आप की नज़ाकत का कि दिल का ख़ून हुआ मुँह से आह कर न सके तुम्हें 'हफ़ीज़' से नफ़रत है तो ये फ़िक्र है क्यूँ किसी हसीन से वो रस्म-ओ-राह कर न सके