इसरार-ओ-इंकिसार से वो मान तो गया लेकिन मैं इस तरह से उसे जान तो गया की उस ने गो तलाफ़ी-ए-माफ़ात बारहा लेकिन जो उस पे मान था वो मान तो गया ये बात और है वो चमक आँख में न थी इतना बहुत है मिल के वो पहचान तो गया अच्छा हुआ वो चश्म-ए-करम हो गई ख़फ़ा सर से ये रोज़ रोज़ का एहसान तो गया इक नक़्द-ए-जाँ है और पस-ए-गर्द-ए-रहगुज़ार बैठे हैं पा-रिकाब कि सामान तो गया फैला के पाँव बैठ फ़राग़-ए-हयात अब घर से तिरे ये रोज़ का मेहमान तो गया दुनिया मिली कि दीन पर इतना ज़रूर है इस कश्मकश में 'शैख़' का ईमान तो गया