चंद लम्हों की फ़राग़त है मयस्सर जानाँ फिर कहाँ हुस्न-ओ-मोहब्बत का ये मंज़र जानाँ आँख भर कर तुझे ऐ जान-ए-जहाँ देख तो लूँ जाने ले जाए कहाँ कल को मुक़द्दर जानाँ ये दहकते हुए रुख़्सार पे रंगीं आँचल काश क़ाएम रहे कुछ देर ये मंज़र जानाँ ये चमन-ज़ार ये कोहसार ये भीगा मौसम इस पे तेरा ये निखरता हुआ पैकर जानाँ गर्म क़हवे की महक और ये बूँदा-बाँदी ये सराए ये हसीं शाम का मंज़र जानाँ कितने तूफ़ान मचलते हैं मिरे सीने में दिल है जज़्बात का बहता हुआ सागर जानाँ कैफ़-ओ-मस्ती के वो लम्हात-ए-हसीं ख़्वाब हुए अब कहाँ हुस्न-ओ-मोहब्बत का वो मंज़र जानाँ