इतना एहसान तो हम पर वो ख़ुदारा करते अपने हाथों से जिगर चाक हमारा करते हम को तो दर्द-ए-जुदाई से ही मर जाना था चंद रोज़ और न क़ातिल को इशारा करते ले के जाते न अगर साथ वो यादें अपनी याद करते उन्हें और वक़्त गुज़ारा करते ज़िंदगी मिलती जो सौ बार हमें दुनिया में हम तो हर बात इसे आप पे वारा करते 'जोश' धुँदलाता न हरगिज़ ये मिरा शीशा-ए-दिल गर्द उस की वो अगर रोज़ उतारा करते