इतना बे-नफ़अ नहीं उस से बिछड़ना मेरा अंजुमन-साज़ हुआ है दिल-ए-तन्हा मेरा सर-निगूँ होने नहीं देता ये एहसास मुझे मैं तो टूटा हूँ मगर ख़्वाब न टूटा मेरा कौन हैं वो जिन्हें आफ़ाक़ की वुसअत कम है ये समुंदर न ये दरिया न ये सहरा मेरा एक ही लम्हा-ए-मौजूद में मौजूद हूँ मैं और इक लम्हे का होना है न होना मेरा दिल में सौ तीर तराज़ू हुए तब जा के खुला इस क़दर सहल न था जाँ से गुज़रना मेरा कैसे तर्सील-ए-सुख़न की कोई सूरत निकले ये ज़बाँ मेरी नहीं है न ये लहजा मेरा मैं अभी सैर-ए-जहाँ-बीनी में गुम हूँ 'अश्फ़ाक़' आसमाँ देख रहा है अभी रस्ता मेरा